EN اردو
अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम | शाही शायरी
allah re is gulshan-e-ijad ka aalam

ग़ज़ल

अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम

जिगर मुरादाबादी

;

अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम
जो सैद का आलम वही सय्याद का आलम

उफ़ रंग-ए-रुख़-ए-बानी-ए-बेदाद का आलम
जैसे किसी मज़लूम की फ़रियाद का आलम

पहरों से धड़कने की भी आती नहीं आवाज़
क्या जानिए क्या है दिल-ए-नाशाद का आलम

मंसूर तो सर दे के सुबुक हो गया लेकिन
जल्लाद से पूछे कोई जल्लाद का आलम

मैं और तिरे हिज्र-ए-मुसलसल की शिकायत
तेरा ही तो आलम है तेरी याद का आलम

क्या जानिए क्या है मिरी मेराज-ए-मक़ामी
आलम तो है सिर्फ़ इक मिरी उफ़्ताद का आलम

अरबाब-ए-चमन से नहीं पूछो ये चमन से
कहते हैं किसे निकहत-ए-बर्बाद का आलम

क्यूँ आतिश-ए-गुल मेरे नशेमन को जलाए
तिनकों में है ख़ुद बर्क़-ए-चमन-ज़ाद का आलम