अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम 
जो सैद का आलम वही सय्याद का आलम 
उफ़ रंग-ए-रुख़-ए-बानी-ए-बेदाद का आलम 
जैसे किसी मज़लूम की फ़रियाद का आलम 
पहरों से धड़कने की भी आती नहीं आवाज़ 
क्या जानिए क्या है दिल-ए-नाशाद का आलम 
मंसूर तो सर दे के सुबुक हो गया लेकिन 
जल्लाद से पूछे कोई जल्लाद का आलम 
मैं और तिरे हिज्र-ए-मुसलसल की शिकायत 
तेरा ही तो आलम है तेरी याद का आलम 
क्या जानिए क्या है मिरी मेराज-ए-मक़ामी 
आलम तो है सिर्फ़ इक मिरी उफ़्ताद का आलम 
अरबाब-ए-चमन से नहीं पूछो ये चमन से 
कहते हैं किसे निकहत-ए-बर्बाद का आलम 
क्यूँ आतिश-ए-गुल मेरे नशेमन को जलाए 
तिनकों में है ख़ुद बर्क़-ए-चमन-ज़ाद का आलम
 
        ग़ज़ल
अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम
जिगर मुरादाबादी

