EN اردو
अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे | शाही शायरी
al-aman ki suraj hai meri jaan ke pichhe

ग़ज़ल

अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे

याक़ूब यावर

;

अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे
और साँप बैठा है साएबान के पीछे

ख़ुश-गवार मौसम पर कामयाबियाँ मब्नी
मन-चला समुंदर है बादबान के पीछे

हम से रह-नवरदों को दश्त रास क्या आता
आख़िरश पलटना था ख़ाक छान के पीछे

चीख़ अल-मदद शायद दस्त-ए-ग़ैब आ जाए
नाविलों के लश्कर हैं दास्तान के पीछे

तीर खा के पहलू में मैं अधर तड़पता था
और मेरी परछाईं थी कमान के पीछे

मुज़्महिल न हो जाए क़ुव्वतों की ताबानी
कोई छुप के बैठा है आसमान के पीछे

नाक़िद-ओ-हलाकू में रब्त-ए-ख़ास है 'यावर'
कुछ क़लम-नुमा ख़ंजर हैं ज़बान के पीछे