अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे
और साँप बैठा है साएबान के पीछे
ख़ुश-गवार मौसम पर कामयाबियाँ मब्नी
मन-चला समुंदर है बादबान के पीछे
हम से रह-नवरदों को दश्त रास क्या आता
आख़िरश पलटना था ख़ाक छान के पीछे
चीख़ अल-मदद शायद दस्त-ए-ग़ैब आ जाए
नाविलों के लश्कर हैं दास्तान के पीछे
तीर खा के पहलू में मैं अधर तड़पता था
और मेरी परछाईं थी कमान के पीछे
मुज़्महिल न हो जाए क़ुव्वतों की ताबानी
कोई छुप के बैठा है आसमान के पीछे
नाक़िद-ओ-हलाकू में रब्त-ए-ख़ास है 'यावर'
कुछ क़लम-नुमा ख़ंजर हैं ज़बान के पीछे

ग़ज़ल
अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे
याक़ूब यावर