अक्स मंज़र में पलटने के लिए होता है
आईना गर्द से अटने के लिए होता है
शाम होती है तो होता है मिरा दिल बेताब
और ये तुझ से लिपटने के लिए होता है
ये जो हम देख रहे हैं कई दुनियाओं को
ऐसा फैलाओ सिमटने के लिए होता है
इल्म जितना भी हो कम पड़ता है इंसानों को
रिज़्क़ जितना भी हो बटने के लिए होता है
साए को शामिल-ए-क़ामत न करो आख़िर-कार
बढ़ भी जाए तो ये घटने के लिए होता है
गोया दुनिया की ज़रूरत नहीं दरवेशों को
या'नी कश्कोल उलटने के लिए होता है
मतला-ए-सुब्ह-ए-नुमू साफ़ तो होगा 'आज़र'
अब्र छाया हुआ छटने के लिए होता है
ग़ज़ल
अक्स मंज़र में पलटने के लिए होता है
दिलावर अली आज़र