अक्स-ए-ज़ंजीर पे जाँ देने के पहलू दूँगा
कुछ सज़ा तुझ को भी ऐ शाहिद-ए-गेसू दूँगा
अपने घर से तुझे जाने नहीं दूँगा ख़ाली
मुझ को हीरे नहीं हासिल हैं तो जुगनू दूँगा
ज़िंदगी तुझ से ये समझौता किया है मैं ने
बेड़ियाँ तू मुझे दे मैं तुझे घुंघरू दूँगा
मुझ को दुनिया की तिजारत में यही हाथ आया
मैं ने आँसू ही कमाए तुझे आँसू दूँगा
मैं हूँ दरिया मुझे ख़िदमत में लगे रहना है
मैं अगर सूख भी जाऊँगा तो बालू दूँगा
मैं तो इक पेड़ हूँ चंदन का मुझे जिस्म न जान
तू मुझे क़त्ल भी कर देगा तो ख़ुशबू दूँगा
पहले कुछ बाँट उसूलों के बना लो 'तसनीम'
जिस में किरदार तुलें मैं वो तराज़ू दूँगा
ग़ज़ल
अक्स-ए-ज़ंजीर पे जाँ देने के पहलू दूँगा
तसनीम फ़ारूक़ी