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अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया | शाही शायरी
aks-e-ruKH-e-gulgun se tamasha nazar aaya

ग़ज़ल

अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया

मुनीर शिकोहाबादी

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अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया
आईना उन्हीं फूलों का दूना नज़र आया

ख़ूबी में दो-बाला वह सरापा नज़र आया
पुर-नूर बदन पैकर-ए-जाैज़ा नज़र आया

दिल ख़ुश गुहरों का हमें सहरा नज़र आया
क्या गर्द-ए-यतीमी का बगूला नज़र आया

नैरंगी-ए-हैरत से रवाँ रहते हैं आँसू
तस्वीर का दरिया हमें बहता नज़र आया

निकला जो हवा-वार में वह रश्क-ए-सुलैमाँ
उड़ता सू-ए-अफ़्लाक फ़रिश्ता नज़र आया

बालीदा है हर शीशा-ए-मय अब की यहाँ तक
एक एक फ़लक पम्बा-ए-मीना नज़र आया

ख़िलअ'त मुझे वहशत ने दिया वुसअत-ए-दिल का
जामे में मिरे दामन-ए-सहरा नज़र आया

नज़रों में ये छाया है ग़ुबार-ए-दिल-ए-वहशी
हर आँख में आँसू मुझे ढेला नज़र आया

वह आइना-सीमा है दिल-ए-सख़्त-अदू में
बोतल में उतरते हुए शीशा नज़र आया

आशिक़ तिरे पलकों का हुआ ज़िंदा-ए-जावेद
सूली का ख़रीदार मसीहा नज़र आया

ज़ाहिद ने भी अक़्द आज किया बिन्त-ए-इनब से
जुफ़्त-ए-बत-ए-मय मुर्ग़-ए-मुसल्ला नज़र आया

बरगश्ता-नसीबी-ए-सदफ़-ए-दिल की कहूँ क्या
मोती के एवज़ इस में फफूला नज़र आया

आईना-ए-गेती में वही अक्स है हर सू
हम ने जिधर उस शोख़ को देखा नज़र आया

करते हो मिरे पैकर-ए-वहमी को निशाना
नावक में तुम्हारे पर-ए-अन्क़ा नज़र आया

उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
मोती भी सदफ़ में तह-ए-दरिया नज़र आया

उस हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे
रंग-ए-गुल-ए-फ़िरदौस भी कच्चा नज़र आया

शीशा मय-ए-गुलगूँ का उन्हें मद्द-ए-नज़र है
तेग़-ए-निगह-ए-मस्त में छाला नज़र आया

हो जाएँगे सब कोह-ए-जहाँ संग-ए-फ़लाख़न
वहशत में जो आलम तह-ओ-बाला नज़र आया

शमएँ जो बुझीं बज़्म-ए-तिलिस्मात को देखा
आँखें जो हुईं बंद तो क्या क्या नज़र आया

क्यूँ ख़ुश न हो तिल बैठ के मीज़ान-ए-फ़लक में
मौज़ून-ए-क़द-ए-यार का पल्ला नज़र आया

मिल मिल गए हैं ख़ाक में लाखों दिल-ए-रौशन
हर ज़र्रा मुझे अर्श का तारा नज़र आया

आँखों में खटकती है यही दौलत-ए-दुनिया
हर सिक्के की मछली में भी काँटा नज़र आया

है बूद-ए-जहाँ नक़्श सर-ए-आब नज़र में
ये खेल हमें बन के बिगड़ता नज़र आया

हैरत-कदा-ए-दहर हुआ मुझ से मुकद्दर
आईना-ए-ईजाद में धब्बा नज़र आया

ख़ुश आते नहीं दाँत किसी हूर के मुझ को
चाक-ए-गुल-ए-फ़िरदौस में बख़िया नज़र आया

मुद्दत से नज़र-दोख़्ता रहते हैं गिरफ़्तार
गेसू की भी ज़ंजीर में टाँका नज़र आया

चंपाकली उस मस्त-ए-मय-ए-हुस्न की देखी
गर्दन की सुराही का ये मीना नज़र आया

मदफ़ून हुआ ज़ेर-ए-ज़मीं आप का लाग़र
चश्म-ए-लहद-ए-तंग में जाला नज़र आया

कलकत्ता में हर दम है 'मुनीर' आप को वहशत
हर कोठी में हर बंगले में जंगला नज़र आया