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अजीब रंग थे दिल में जो आँसुओं में न थे | शाही शायरी
ajib rang the dil mein jo aansuon mein na the

ग़ज़ल

अजीब रंग थे दिल में जो आँसुओं में न थे

तौसीफ़ तबस्सुम

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अजीब रंग थे दिल में जो आँसुओं में न थे
पस-ए-मिज़ा थे वो चेहरे कि चिलमनों में न थे

जो रो चुके तो यही बोलते दर-ओ-दीवार
हुए ख़मोश कि जैसे कभी घरों में न थे

हमारी वज़्अ ने पाबंदियाँ क़ुबूल न कीं
मिसाल-ए-नश्शा थे हम और साग़रों में न थे

चले तो अपनी ही रफ़्तार से उलझ के गिरे
हवा की तरह मुक़य्यद जो फ़ासलों में न थे

चमन में रह के वो काँटे चुभो लिए हम ने
कि इतने रंग तो शायद यहाँ गुलों में न थे

फ़ना का ख़ौफ़ था महमेज़ चलने वालों का
ये हौसले कभी टूटे हुए परों में न थे

बड़ा अज़ीम मुसव्विर था डूबता सूरज
शफ़क़ के रंग मगर बुझते रौज़नों में न थे