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अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी | शाही शायरी
ajib hun ki mohabbat shanas ho kar bhi

ग़ज़ल

अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी

नदीम भाभा

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अजीब हूँ कि मोहब्बत शनास हो कर भी
उदास लगता नहीं हूँ उदास हो कर भी

ख़ुदा की तरह कोई आदमी भी है शायद
नज़र जो आता नहीं आस-पास हो कर भी

नुमू की रौशनी ले कर उगा हूँ सहरा में
मैं सब्ज़ हो नहीं सकता हूँ घास हो कर भी

वजूद वहम बना मिट गया मगर फिर भी
तुम्हारे पास नहीं हूँ क़यास हो कर भी

ये आदमी पे हुकूमत तुम्हें मुबारक हो
फ़क़ीर कैसे छुपे ख़ुश-लिबास हो कर भी