अजब चंचल मिला है यार हमना
किया इक-बारगी सरशार हमना
तधाँ सूँ देख कर कुछ यूँ समझते
दो-आलम साहिब-ए-असरार हमना
गुल-ए-बुस्ताँ है गोया ख़ार-ए-सहरा
वसा जब हुस्न का गुलज़ार हमना
ज़मीं सूँ ता-फ़लक सारे हिजाबात
हुए हैं मतला-उल-अनवार हमना
हुआ दिल सुर्ख़-रू आया नज़र जब
शगुफ़्ता चेहरा-ए-गुल-नार हमना
नवाज़िश और तलत्तुफ़ सूँ अपस के
दिया ख़ल्वत में अपने बार हमना
'अलीमुल्लाह' हुज़ूरी में सनम के
नहीं जुज़ बंदगी इक़रार हमना
ग़ज़ल
अजब चंचल मिला है यार हमना
अलीमुल्लाह