ऐ सितमगर नहीं देखा जाता
ज़ख़्म दिल पर नहीं देखा जाता
हम से ज़ाहिद को बराबर अपने
लब-ए-कौसर नहीं देखा जाता
दश्त की जिस में कोई बात न हो
हम से वो घर नहीं देखा जाता
हम ने देखा ही नहीं जल्वा-ए-यार
कहें क्यूँ-कर नहीं देखा जाता
देखना शौक़-ए-शहादत मेरा
मुझ से ख़ंजर नहीं देखा जाता
तूर पर देखने जाते हैं 'कलीम'
दिल के अंदर नहीं देखा जाता
ग़ज़ल
ऐ सितमगर नहीं देखा जाता
मिर्ज़ा मायल देहलवी