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ऐ शम्मा तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह | शाही शायरी
ai shamma tujh pe raat ye bhaari hai jis tarah

ग़ज़ल

ऐ शम्मा तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह

नातिक़ लखनवी

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ऐ शम्मा तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
मैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह

दिल के सिवा कोई न था सरमाया अश्क का
हैराँ हूँ काम आँखों का जारी है किस तरह

उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम्मा-ए-बज़्म नूरी ओ नारी है जिस तरह

बस यूँ समझ लो मुझ को उम्मीद-ए-सहर न थी
क्या पूछते हो रात गुज़ारी है किस तरह

उस नक्श-ए-मुस्तक़िल पे है शर्मिंदा आईना
तस्वीर उन की दिल पे उतारी है इस तरह

'नातिक़' जलाल में भी असर इस क़दर नहीं
रोब-ए-जमाल क़ल्ब पे तारी है जिस तरह