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ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना | शाही शायरी
ai saba nikhat-e-gesu-e-muambar lana

ग़ज़ल

ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना

वारिस किरमानी

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ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना
कोई तोहफ़ा गुल-ओ-नसरीन से ख़ुश-तर लाना

शबनमिस्तान-ए-मोहब्बत की हसीं राहों से
ख़ुनकी-ए-शबनम-ओ-नूर-ए-मह-ओ-अख़्तर लाना

जाँ-ब-लब हैं तिरे मुश्ताक़ सर-ए-राह-ए-हयात
दम-ए-ईसा-व-मय-ए-लाल-ओ-गुल-ए-तर लाना

इश्क़ हो मस्त-ओ-ग़ज़ल-ख़्वान-ओ-सुराही-बर-दोश
ज़िंदगी ताज़ा-ओ-सरशार-ओ-मुअत्तर लाना

दर-ख़ुर-ए-महफ़िल-ओ-शायान-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ
आतिशीं मुतरिब-ओ-बेबाक नवा-गर लाना

तुझ को अंदोह-ए-असीरान-ए-क़फ़स की सौगंद
आरज़ूओं के हसीं फूल खिला कर लाना

कुश्तगान-ए-सितम-ए-दौर-ए-ख़िज़ाँ हैं हम लोग
अपने हमराह बहारों का पयम्बर लाना

इस नए दौर के शे'रों में तग़ज़्ज़ुल कम है
मेरी उफ़्ताद तबीअ'त का सुख़नवर लाना