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ऐ सबा कह बहार की बातें | शाही शायरी
ai saba kah bahaar ki baaten

ग़ज़ल

ऐ सबा कह बहार की बातें

नाजी शाकिर

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ऐ सबा कह बहार की बातें
इस बुत-ए-गुल-एज़ार की बातें

किस पे छोड़े निगाह का शहबाज़
क्या करे है शिकार की बातें

मेहरबानी सीं या हों ग़ुस्से सीं
प्यारी लगती हैं यार की बातें

छोड़ते कब हैं नक़्द-ए-दिल कूँ सनम
जब ये करते हैं प्यार की बातें

पूछिए कुछ कहें हैं कुछ 'नाजी'
आ पड़ीं रोज़गार की बातें