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ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया | शाही शायरी
ai saba jazb pe jis dam dil-e-nashad aaya

ग़ज़ल

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

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ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया
अपनी आग़ोश में उड़ कर वो परी-ज़ाद आया

महव-ए-अबरू के लिए ख़ंजर-ए-फ़ौलाद आया
ज़ब्ह करना भी न तुझ को मिरे जल्लाद आया

सर-कशी पर जो वो सर्व-ए-सितम-ईजाद आया
पास आरे के घिसटता हुआ शमशाद आया

चश्म-ए-मूसा हमा-तन बन गया मैं हैरत से
देखा इक बुत का वो आलम कि ख़ुदा याद आया

दम-ए-आग़ाज़-ए-जुनूँ तौक़ गुलू-गीर हुआ
ग़ुल मचाने भी न पाए थी कि हद्दाद आया

कट गए मारे ख़जालत के जवानान-ए-चमन
बाढ़ पर क़द जो तिरा ओ सितम-ईजाद आया

आशिक़ों से न रहा कोई ज़माना ख़ाली
कभी वामिक़ कभी मजनूँ कभी फ़रहाद आया

दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया

रोए ग़ुर्बत में हुजूम-ए-गुल-ए-सहराई पर
चमन-ए-मजमा-ए-यारान-ए-वतन याद आया

मिज़ा-ए-यार के नश्तर के हुए सौदाई
ख़ून-ए-फ़ासिद की तरह जोश में फ़स्साद आया

बन गया ख़ाल-ए-जबीं कौकब-ए-बख़्त-ए-यूसुफ़
किस तरक़्क़ी पे तिरा हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद आया

आरिज़-ए-साफ़ का खींचा न गया जब नक़्शा
आइना ले के तिरे सामने बहज़ाद आया

बैत-ए-हस्ती के 'सबा' हो गए मा'नी रौशन
ख़्वाजा-'आतिश' सा ज़माने में जो उस्ताद आया