EN اردو
ऐ मुझे 'मीर' के अशआ'र सुनाने वाले | शाही शायरी
ai mujhe mir ke ashaar sunane wale

ग़ज़ल

ऐ मुझे 'मीर' के अशआ'र सुनाने वाले

अासिफ़ शफ़ी

;

ऐ मुझे 'मीर' के अशआ'र सुनाने वाले
जाग उट्ठे हैं कई दर्द पुराने वाले

मुझ को तन्हाई में यूँ छोड़ के जाता क्यूँ है
तेरी जानिब हैं कई क़र्ज़ चुकाने वाले

ये बता हिज्र के मौसम का मुदावा क्या है
मुझ को अंदाज़ मोहब्बत के सिखाने वाले

इश्क़ वालों से हसब और नसब पूछते हो
लोग हैं ये तो मियाँ ऊँचे घराने वाले

वर्ना सहरा की न यूँ ख़ाक उड़ाई होती
तू ने देखे ही नहीं साँप ख़ज़ाने वाले

दिल की मंज़िल का है आग़ाज़ वहाँ से 'आसिफ़'
लौट आते हैं जहाँ से ये ज़माने वाले