ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो
गुल-बदन साक़ी सेती हर शब हम-आग़ोशी करो
दोस्ती की रह में दिल कूँ सर्द करना ख़ूब नईं
दम-ब-दम ख़ुर्शीद-रूयाँ सीं गरम-जोशी करो
मुद्दआ' गर है ज़ुहूर-ए-क़ुर्ब अपना ख़ल्क़ पर
अंजुमन में बरमला ख़ूबाँ से सरगोशी करो
मह-रुख़ाँ के देखने का है अगर दिल मूं तलाश
आसमाँ साँ इख़्तियार-ए-ख़ाना-बरदोशी करो
अहल-ए-मा'नी में अगर दाख़िल होने का शौक़ है
हर्फ़-ए-बे-मा'नी सती हर वक़्त ख़ामोशी करो

ग़ज़ल
ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला