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ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो | शाही शायरी
ai jawanan nau-bahaaran mein qadah-noshi karo

ग़ज़ल

ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो

उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला

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ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो
गुल-बदन साक़ी सेती हर शब हम-आग़ोशी करो

दोस्ती की रह में दिल कूँ सर्द करना ख़ूब नईं
दम-ब-दम ख़ुर्शीद-रूयाँ सीं गरम-जोशी करो

मुद्दआ' गर है ज़ुहूर-ए-क़ुर्ब अपना ख़ल्क़ पर
अंजुमन में बरमला ख़ूबाँ से सरगोशी करो

मह-रुख़ाँ के देखने का है अगर दिल मूं तलाश
आसमाँ साँ इख़्तियार-ए-ख़ाना-बरदोशी करो

अहल-ए-मा'नी में अगर दाख़िल होने का शौक़ है
हर्फ़-ए-बे-मा'नी सती हर वक़्त ख़ामोशी करो