ऐ जान हुस्न-ए-अफ़सर-ए-ख़ूबाँ तुम्हीं तो हो
मैं इक गदा-ए-इश्क़ हूँ सुल्ताँ तुम्हीं तो हो
पहूँची है आसमाँ पे तजल्ली जमाल की
कहते हैं लोग मेहर-ए-दरख़्शाँ तुम्हीं तो हो
सच सच ये कह रहा है तनासुख़ का मसअला
रूह-ए-अज़ीज़-ए-यूसुफ़-ए-कनआँ' तुम्हीं तो हो
आगे तुम्हारे सर्व है ग़ैरत से पा-ब-गुल
सहन-ए-चमन में सर्व-ए-ख़िरामाँ तुम्हीं तो हो
हर बात पर बिगड़ते हो रिंदों से शैख़-जी
सारे जहाँ में एक मुसलमाँ तुम्हीं तो हो
दिल मेरा ले के तुम ने खिलौना बना लिया
दुनिया में एक तिफ़्लक-ए-नादाँ तुम्हीं तो हो
बातों में सेहर चाल में महशर निगह में क़हर
साबित है इन से फ़ित्ना-ए-दौराँ तुम्हीं तो हो
दिल दे के तुम को क्यूँ न कहूँ माया-ए-हयात
मेरे जिगर तुम्हीं हो मिरी जाँ तुम्हीं तो हो
मद्दाह हों तुम्हारे न किस तरह हक़-पसंद
'अहक़र' बुतों के एक सना-ख़्वाँ तुम्हीं तो हो
ग़ज़ल
ऐ जान हुस्न-ए-अफ़सर-ए-ख़ूबाँ तुम्हीं तो हो
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र