ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
ख़ाली पड़े हैं जाम! ज़रा आँख तो मिला
कहते हैं आँख आँख से मिलना है बंदगी
दुनिया के छोड़ काम! ज़रा आँख तो मिला
क्या वो न आज आएँगे तारों के साथ साथ
तन्हाइयों की शाम! ज़रा आँख तो मिला
ये जाम ये सुबू ये तसव्वुर की चाँदनी
साक़ी कहाँ मुदाम! ज़रा आँख तो मिला
साक़ी मुझे भी चाहिए इक जाम-ए-आरज़ू
कितने लगेंगे दाम! ज़रा आँख तो मिला
पामाल हो न जाए सितारों की आबरू
ऐ मेरे ख़ुश-ख़िराम! ज़रा आँख तो मिला
हैं राह-ए-कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए
'साग़र' तिरे ग़ुलाम! ज़रा आँख तो मिला
ग़ज़ल
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
साग़र सिद्दीक़ी