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ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ | शाही शायरी
ai ham-daman bhulao na tum yaad-e-raftagan

ग़ज़ल

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

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ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ
वामाँदगाँ को है यही इरशाद-ए-रफ़्तगाँ

जो ग़ुंचा ना-शगुफ़्ता ही झड़ जाए शाख़ से
है इस चमन में वो दिल-ए-नाशाद-ए-रफ़्तगाँ

चश्म-ओ-दिल-ओ-जिगर के लिए अश्क़-ए-दर्द-ओ-दाग़
हम पास है ये तोहफ़ा-ए-इमदाद-ए-रफ़्तगाँ

इस कारवाँ-सरा में ये बाँग-ए-जरस नहीं
है ये सदा-ए-नाला-ओ-फ़र्याद-ए-रफ़्तगाँ

आसीदा-ओ-रविंदा से पूछा बहुत 'मुहिब'
दरयाफ़्त पर न कुछ हुई रूदाद-ए-रफ़्तगाँ