ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ
इन वहशतों के वास्ते सहरा कहाँ से लाएँ
हसरत तो है यही कि हो दुनिया से दिल को मेल
हो जिस से दिल को मेल वो दुनिया कहाँ से लाएँ
देखा था जो निहाल-ए-तमन्ना के साए में
ऐ बे-दिली वो दिल दिल-ए-अफ़ज़ा कहाँ से लाएँ
रौशन थे जो कभी वो नज़ारे किधर गए
बरपा था जो कभी वो तमाशा कहाँ से लाएँ
क्या उस निगाह-ए-हौसला-अफ़ज़ा को दें जवाब
गुम कर दिया जिसे वो तमन्ना कहाँ से लाएँ
है लुत्फ़-ए-दोस्त हर्फ़-ए-तक़ाज़ा का मुंतज़िर
ऐ बेबसी मजाल-ए-तमन्ना कहाँ से लाएँ
'हक़्क़ी' बहुत है कार-ए-जुनूँ दश्त-ए-ज़ीस्त में
आसूदगान-ए-राह वो सौदा कहाँ से लाएँ
ग़ज़ल
ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ
शानुल हक़ हक़्क़ी