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ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ | शाही शायरी
ai dil ab ishq ki lai-goi aur chaugan mein aa

ग़ज़ल

ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ

क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी

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ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
बे-ख़तर ठोक के ख़म जंग के सामान में आ

ख़ौफ़ ग़म्माज़ रक़ीबों का न कर कुछ हरगिज़
हो के राज़ी ब-रज़ा वक़्त है मैदान में आ

फ़ुर्सत इस वक़्त ग़नीमत है निकल ज़ुल्मत से
सुल्झ कर ज़ुल्फ़ से रूख़्सार-ए-दरख़्शान में आ

गुल-ए-रूख़्सारा का नज़्ज़ारा तू कर आँखें खोल
अंग्बीं चखने को फिर दिल लब-ए-ख़ंदान में आ

बा'द उस के जो अगर समझे मुनासिब ऐ दिल
क़ैद होने के तईं चाह-ए-ज़नख़दान में आ

हर्ज़ा फिरने से तिरे गोशा-नशीनी बेहतर
वहम-ओ-शक और गुमाँ छोड़ के ईक़ान में आ

वस्ल-ओ-हिजरत के तईं एक समझ 'अफ़रीदी'
अक़्ल है कुछ भी अगर सोहबत-ए-रिंदान में आ