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ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ | शाही शायरी
ai bulbul-e-dil dauD ke jaanan kun pahunch tun

ग़ज़ल

ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ

उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला

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ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ
वीराना-ए-तन छोड़ गुलिस्ताँ कूँ पहुँच तूँ

तुझ हिज्र सीं हूँ जाँ-ब-लब ऐ यार शिफ़ा-बख़्श
जल्दी से मिरे दर्द के दरमाँ कूँ पहुँच तूँ

याक़ूब तिरे ग़म सती ऐ यूसुफ़-ए-मिस्री
बेकल है शिताबी सती कनआँ' कूँ पहुँच तूँ

लगना है तुझे पाँव सीं गर ऐ दिल-ए-पुर-ख़ूँ
संजाफ़ नमन शोख़ के दामाँ कूँ पहुँच तूँ

ऐ दिल जो तुझे जग मने होना है सुरख़-रू
तू पिउ के लब-ए-ला'ल-ए-बदख़्शाँ कूँ पहुँच तूँ

है हुस्न की गरमी सेती बेताब शब-ओ-रोज़
ऐ बाद-ए-सहर ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ कूँ पहुँच तूँ