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अहल-ए-उल्फ़त से तने जाते हैं | शाही शायरी
ahl-e-ulfat se tane jate hain

ग़ज़ल

अहल-ए-उल्फ़त से तने जाते हैं

नूह नारवी

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अहल-ए-उल्फ़त से तने जाते हैं
रोज़ रोज़ आप बने जाते हैं

ज़ब्ह तो करते हो कुछ ध्यान भी है
ख़ून में हाथ सने जाते हैं

रूठना उन का ग़ज़ब ढाएगा
अब वो क्या जल्द मने जाते हैं

कुछ इधर दिल भी खिंचा जाता है
कुछ उधर वो भी तने जाते हैं

क्यूँ न ग़म हो मुझे रुस्वाई का
वो मिरे साथ सने जाते हैं

दिल न घबराए कि वो रूठ गए
चार फ़िक़्रों में मने जाते हैं

है ये मतलब नहीं छेड़े कोई
बैठे बैठे वो तने जाते हैं

बे-वफ़ाओं से वफ़ा की उम्मीद
'नूह' नादान बने जाते हैं