अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख
कभी जो लिख नहीं पाया वो अब लिख
तमाज़त हिर्स की हद से बढ़ी है
समुंदर ख़ुद हुआ है तिश्ना-लब लिख
अना मेरी ज़बाँ खुलने न देगी
मुझे तू जितना चाहे बे-तलब लिख
कमीना सारी दुनिया तेरे आगे
मगर अपना भी तो नाम-ओ-नसब लिख
मिरी क़िंदील-ए-जाँ जलती है शब भर
ज़रा अपनी भी तो रूदाद-ए-शब लिख
'तपिश' तेरे लिए मेरी दुआ है
जो हक़ तू जानता है सब का सब लिख
ग़ज़ल
अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख
अब्दुस्समद ’तपिश’