अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
गुल ओ रैहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले
खिले हर ग़ुंचा-ए-दिल ज्यूँ गुल-ए-शादाब शादी सूँ
अगर टुक घर सूँ बाहर वो बहार-दिल-कुशा निकले
ग़नीम-ए-ग़म किया है फ़ौज-बंदी इश्क़-बाज़ां पर
बजा है आज वो राजा अगर नौबत बजा निकले
निसार उस के क़दम ऊपर करूँ अंझुवाँ के गौहर सब
अगर करने कूँ दिल-जूई वो सर्व-ए-ख़ुश-अदा निकले
सनम आए करूँगा नाला-ए-जाँ-सोज़ कूँ ज़ाहिर
मगर उस संग-दिल सूँ मेहरबानी की सदा निकले
रहे मानिंद-ए-लाल-ए-बे-बहा शाहाँ के ताज ऊपर
मोहब्बत में जो कुइ अस्बाब ज़ाहिर कूँ बहा निकले
बख़ीली दर्स की हरगिज़ न कीजो ऐ परी-पैकर
'वली' तेरी गली में जब कि मानिंद-ए-गदा निकले
ग़ज़ल
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
वली मोहम्मद वली