EN اردو
अफ़्साना-ए-हयात-ए-परेशाँ के साथ साथ | शाही शायरी
afsana-e-hayat-e-pareshan ke sath sath

ग़ज़ल

अफ़्साना-ए-हयात-ए-परेशाँ के साथ साथ

अज़ीम मुर्तज़ा

;

अफ़्साना-ए-हयात-ए-परेशाँ के साथ साथ
दुनिया बदल गई ग़म-ए-पिन्हाँ के साथ साथ

बेताबी-ए-हयात में आसूदगी भी थी
कुछ तेरा ग़म भी था ग़म-ए-दौराँ के साथ साथ

अब मेरे साथ उन की नज़र भी है बे-क़रार
नश्तर तड़प रहे हैं रग-ए-जाँ के साथ साथ

अब इम्तियाज़-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन भी मिट गया
दिल चाक हो रहा है गरेबाँ के साथ साथ

नैरंगी-ए-जहान-ए-तलब देखना 'अज़ीम'
बढ़ता है शौक़ तंगी-ए-दामाँ के साथ साथ