अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना!
आईना बात करने पे मजबूर हो गया
दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए
जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया
सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया
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ग़ज़ल
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
बशीर बद्र