EN اردو
अभी तो यही देखना चाहता हूँ | शाही शायरी
abhi to yahi dekhna chahta hun

ग़ज़ल

अभी तो यही देखना चाहता हूँ

हरी चंद अख़्तर

;

अभी तो यही देखना चाहता हूँ
नहीं चाहता उन को या चाहता हूँ

वो कहते हैं तुम मुझ से क्या चाहते हो
यही कुछ तो मैं जानना चाहता हूँ

मिरी नियतों पर नज़र रखने वालो
ख़ुदारा बता दो मैं क्या चाहता हूँ

न समझा कोई जिस को वो हर्फ़ हूँ मैं
ग़लत हो गया हूँ मिटा चाहता हूँ

वो पुर-जोश आँसू वो ख़ामोश आहें
वही इश्क़ की इब्तिदा चाहता हूँ

मैं समझा वो कुछ पूछना चाहते हैं
वो समझे कि मैं कुछ कहा चाहता हूँ

उम्मीदों से दिल-ए-बर्बाद को आबाद करता हूँ
मिटाने के लिए दुनिया नई ईजाद करता हूँ

तिरी मीआद-ए-ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी ख़ुश हो
क़फ़स टूटे न टूटे में तुझे आज़ाद करता हूँ

जफ़ा-कारो मिरी मज़लूम ख़ामोशी पे हँसते हो
ज़रा ठहरो ज़रा दम लो अभी फ़रियाद करता हूँ

में अपने दिल का मालिक हूँ मिरा दिल एक बस्ती है
कभी आबाद करता हूँ कभी बर्बाद करता हूँ

मुलाक़ातें भी होती हैं मुलाक़ातों के बा'द अक्सर
वो मुझ को भूल जाते हैं मैं उन को याद करता हूँ

ख़ुदी की इब्तिदा ये थी कि अपने-आप में गुम था
ख़ुदी की इंतिहा ये है ख़ुदा को याद करता हूँ

बुतों के इश्क़ में खोया गया हूँ वर्ना ऐ 'अख़्तर'
ख़ुदा शाहिद है मैं अक्सर ख़ुदा को याद करता हूँ