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अभी से आफ़त-ए-जाँ है अदा अदा तेरी | शाही शायरी
abhi se aafat-e-jaan hai ada ada teri

ग़ज़ल

अभी से आफ़त-ए-जाँ है अदा अदा तेरी

जलील मानिकपूरी

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अभी से आफ़त-ए-जाँ है अदा अदा तेरी
ये इब्तिदा है तो क्या होगी इंतिहा तेरी

मिरी समझ में ये क़ातिल न आज तक आया
कि क़त्ल करती है तलवार या अदा तेरी

नक़ाब लाख छुपाए वो छुप नहीं सकती
मिरी नज़र में जो सूरत है दिलरुबा तेरी

लहू की बूँद भी ऐ तीर-ए-यार दिल में नहीं
ये फ़िक्र है कि तवाज़ो करूँ मैं क्या तेरी

सुँघा रही है मुझे ग़श में निकहत-ए-गेसू
ख़ुदा दराज़ करे उम्र ऐ सबा तेरी

अदा पे नाज़ तो होता है सब हसीनों को
फ़ज़ा को नाज़ है जिस पर वो है अदा तेरी

'जलील' यार के दर तक गुज़र नहीं न सही
हज़ार शुक्र कि है उस के दिल में जा तेरी