अभी रुस्वाइयों का इक बड़ा बाज़ार आएगा
फिर इस के बाद ही वो कूचा-ए-दिलदार आएगा
वतन की एक तस्वीर ख़याली सब बनाते हैं
ख़बर लेकिन नहीं क्या इस में कू-ए-यार आएगा
गुल-ए-शाख़-ए-मोहब्बत पर लहू का रंग खिलता है
कि अब रंग-ए-हिना ज़िक्र-ए-लब-ओ-रुख़्सार आएगा
हमारे वास्ते भी साअत-ए-हमवार ठहरेगी
कि राह-ए-शौक़ में जिस दम वो ना-हमवार आएगा
अभी आब-ओ-हवा-ए-जिस्म के असरार खुलते हैं
अभी वो तोड़ने इस जिस्म की दीवार आएगा
करो अहल-ए-जुनूँ कुछ तो करो सामान-ए-दिलदारी
कि शहर-ए-इश्क़ में वो शोख़ पहली बार आएगा
ग़ज़ल
अभी रुस्वाइयों का इक बड़ा बाज़ार आएगा
महताब हैदर नक़वी