अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
तू यार दस्त-ए-हक़ीक़त मुझे दोबारा बना
कि बह न जाऊँ मैं दरिया की रस्म-ए-इजरा में
क़याम दे मिरी मिट्टी मुझे किनारा बना
हम अपना अक्स तो छोड़ आए थे पर उस के बा'द
ख़बर नहीं कि उन आँखों में क्या हमारा बना
मुझे जो बनना है बन जाऊँगा ख़ुद अपने आप
बनाने वाले मुझे ख़ूब पारा-पारा बना
हुजूम-ए-शहर कि जिस की मुलाज़मत में हूँ मैं
मिरे लिए मिरी तन्हाई का इदारा बना
इसी लिए तो मुनाफ़े' में है हवस का काम
कि इश्क़ मेरे लिए बाइ'स-ए-ख़सारा बना
शिकारियों को खुला छोड़ दश्त-ए-मा'नी में
तू अपने लफ़्ज़ को 'एहसास' महज़ इशारा बना
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ग़ज़ल
अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
फ़रहत एहसास