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अभी बादलों का सफ़र कहाँ मिरे मेहरबाँ | शाही शायरी
abhi baadalon ka safar kahan mere mehrban

ग़ज़ल

अभी बादलों का सफ़र कहाँ मिरे मेहरबाँ

बुशरा हाश्मी

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अभी बादलों का सफ़र कहाँ मिरे मेहरबाँ
अभी क़ैद हूँ सर-ओ-आशियाँ मिरे मेहरबाँ

रहे फ़ासले मिरी दस्तरस में तमाम दिन
मगर अब तो शाम का है समाँ मिरे मेहरबाँ

सभी पुर्सिश-ए-ग़म-ए-जाँ के वास्ते आए थे
मिरे चारागर मिरे नौहा-ख़्वाँ मिरे मेहरबाँ

वही लफ़्ज़ हैं दुर्र-ए-बे-बहा मिरे वास्ते
जिन्हें छू गई हो तिरी ज़बाँ मिरे मेहरबाँ

सभी मरहले रह-ए-शौक़ के थे निगाह में
मिरे हौसले रहे ना-तवाँ मिरे मेहरबाँ

कभी गर्दिश-ए-शब-ओ-रोज़ से न अमाँ मिली
मिरे सर पे कब न था आसमाँ मिरे मेहरबाँ