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अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है | शाही शायरी
abas abas tujhe mujhse hijab aata hai

ग़ज़ल

अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

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अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है
तिरे लिए कोई ख़ाना-ख़राब आता है

पलक के मारते हस्ती तमाम होती है
अबस को बहर-ए-अदम से हबाब आता है

ख़ुदा ही जाने जलाया है किस सितमगर ने
जिगर तो चश्म से हो कर कबाब आता है

शब-ए-फ़िराक़ में अक्सर मैं ले के आईना
ये देखता हूँ कि आँखों में ख़्वाब आता है

नज़र करूँ हूँ तो याँ ख़्वाब का ख़याल नहीं
गिरे है लख़्त-ए-जिगर या कि आब आता है