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अब वो पहली सी शिद्दत कहाँ है | शाही शायरी
ab wo pahli si shiddat kahan hai

ग़ज़ल

अब वो पहली सी शिद्दत कहाँ है

अब्दुर्रहमान मोमिन

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अब वो पहली सी शिद्दत कहाँ है
हिज्र में वे तमाज़त कहाँ है

हम तो ठहरे सदा के गदागर
तू बता तेरी दौलत कहाँ है

देख कर चाँद जलता था जिस को
आज वो ख़ूबसूरत कहाँ है

साँस ख़ुद ही चली आ रही है
साँस लेने की फ़ुर्सत कहाँ है

आइना मैं ने देखा तो देखा
सारे आलम की हैरत कहाँ है

अब तो बस एक दिल ही बचा है
और वो भी सलामत कहाँ है

आदमी तो नज़र आ रहे हैं
हाँ मगर आदमियत कहाँ है

ढूँडने से जो मिल जाए 'मोमिन'
ढूँड लेना मोहब्बत कहाँ है