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अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं | शाही शायरी
ab wo agla sa iltifat nahin

ग़ज़ल

अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

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अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं
जिस पे भूले थे हम वो बात नहीं

मुझ को तुम से ए'तिमाद-ए-वफ़ा
तुम को मुझ से पर इल्तिफ़ात नहीं

रंज क्या क्या हैं एक जान के साथ
ज़िंदगी मौत है हयात नहीं

यूँही गुज़रे तो सहल है लेकिन
फ़ुर्सत-ए-ग़म को भी सबात नहीं

कोई दिल-सोज़ हो तो कीजे बयाँ
सरसरी दिल की वारदात नहीं

ज़र्रा ज़र्रा है मज़हर-ए-ख़ुर्शीद
जाग ऐ आँख दिन है रात नहीं

क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली'
आशिक़ी कुछ किसी की ज़ात नहीं