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अब रवानी से है नजात मुझे | शाही शायरी
ab rawani se hai najat mujhe

ग़ज़ल

अब रवानी से है नजात मुझे

विकास शर्मा राज़

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अब रवानी से है नजात मुझे
मुंजमिद कर गई वो रात मुझे

सब गुमाँ रह गए धरे के धरे
हो गया ए'तिबार-ए-ज़ात मुझे

मैं अदम की पनाह-गाह में हूँ
छू भी सकती नहीं हयात मुझे

ज़रा भी एहतिजाज कर न सका
ले गया साया अपने सात मुझे

मुझ से नाराज़ चल रहे हैं हर्फ़
घूरते हैं क़लम दवात मुझे

सोचता हूँ कि खेल से हट जाऊँ
बारहा मिल रही है मात मुझे