अब इस से और इबारत नहीं कोई सादी
कि मेरा ख़ास हुनर भी रहा ख़ुदा-दादी
ख़ुदा की याद है ख़ल्वत में इस लिए बेहतर
कि ख़ुद को जानेगा तन्हाइयों में फ़रियादी
तुम उस के बंदे बनो वो कि जो दिखाई न दे
इसी में पिन्हाँ है इंसान रम्ज़-ए-आज़ादी
वो जाने वाले हों हाज़िर कि आने वाले हों
सब एक ख़त में खड़े हैं ब-क़ैद-ए-अबआ'दी
बता शराफ़त-ए-दुनिया बता कि खुल जाए
करेगा कब तलक इस दिल में ख़ाना-दामादी
ये वहम फ़हम-ए-हक़ीक़त नहीं हक़ीक़त है
कि बस हक़ीक़त-ए-दुनिया है गिर्या-ए-शादी
ये शर्क़-ओ-ग़र्ब के ऊँचे पहाड़ ख़ामी हैं
हक़ीक़तन मुझे हासिल है जिस्म-ए-फ़ौलादी
हुआ न कोई मिरी ख़ू से ख़ातिर-आशुफ़्ता
मिरा वजूद है मिस्दाक़-ए-ख़ाना-आबादी
रुके थमे न यहीं तक नया सफ़र 'तमजीद'
दिखाए किल्क-ए-सुख़न आगे और उस्तादी
ग़ज़ल
अब इस से और इबारत नहीं कोई सादी
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद