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अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में | शाही शायरी
ab dil hai un ke halqa-e-dam-e-jamal mein

ग़ज़ल

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

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अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में
देखा न था जिन्हें कभी ख़्वाब-ओ-ख़याल में

ऐ तल्ख़ी-ए-फ़िराक़ ब-जुज़ नाला-ए-अलम
पाया न कुछ भी मैं ने उमीद-ए-विसाल में

फ़ितरत ने दे के इश्क़ को एहसास-ए-ज़ब्त-ए-शौक़
उलझा दिया है कशमकश-ए-ला-ज़वाल में

बार-ए-ग़म-ए-जहाँ भी है तेरा ख़याल भी
हैं कितनी वुसअतें दिल-ए-आशुफ़्ता-हाल में

आवाज़ दी है तुझ को तसव्वुर ने बारहा
राह-ए-सुरूर में कभी दश्त-ए-मलाल में

अपने ही दिल पे कुछ नहीं मौक़ूफ़ ऐ 'नसीम'
हर दिल असीर है ग़म-ए-हस्ती के जाल में