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अब भी गुज़रे हुए लोगों का असर बोलता है | शाही शायरी
ab bhi guzre hue logon ka asar bolta hai

ग़ज़ल

अब भी गुज़रे हुए लोगों का असर बोलता है

इसहाक़ अतहर सिद्दीक़ी

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अब भी गुज़रे हुए लोगों का असर बोलता है
राह ख़ामोश है इम्कान-ए-सफ़र बोलता है

शाख़ से टूट के रिश्ते नहीं टूटा करते
ख़ुश्क पत्तों की ज़बाँ में भी शजर बोलता है

ये तो दुनिया है तसलसुल का अमल जारी है
बोलने वाले चले जाएँ तो घर बोलता है

ढूँडने जाएँ तो मिलता ही नहीं उस का पता
और रस्ता है कि ता-हद्द-ए-नज़र बोलता है

उन के चेहरों पे है तहरीर कहाँ के हैं ये लोग
उन को जाना है किधर रख़्त-ए-सफ़र बोलता है

आने वाले किसी लम्हे की ख़बर हो शायद
सर झुकाए हुए इक ख़ाक ब-सर बोलता है

दर्द की कोई अलग से नहीं होती है ज़बाँ
मेरी आवाज़ में अब सारा नगर बोलता है

घर में बैठे हुए क्या सोच रहे हो 'अतहर'
बंद दरवाज़ों में ख़ुद अपना ही डर बोलता है