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अब बा'द-ए-फ़ना किस को बताऊँ कि मैं क्या था | शाही शायरी
ab baad-e-fana kis ko bataun ki main kya tha

ग़ज़ल

अब बा'द-ए-फ़ना किस को बताऊँ कि मैं क्या था

शौकत थानवी

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अब बा'द-ए-फ़ना किस को बताऊँ कि मैं क्या था
इक ख़्वाब था और ख़्वाब भी ता'बीर-नुमा था

अब तक वो समाँ याद है जब होश-ब-जा था
हर शय में मुझे लुत्फ़ था हर शय में मज़ा था

तुम जौर-ओ-जफ़ा मुझ पे न करते तो बुरा था
होते न अगर ज़ुल्म तो क्या लुत्फ़-ए-वफ़ा था

कुछ याद हैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत की वो बातें
और भूलने वाले यही पैमान-ए-वफ़ा था

मौक़ूफ़ है दीदार फ़क़त ज़ौक़-ए-नज़र पर
अक्सर के लिए तूर के शो'लों में ख़ुदा था

यूँ मौत पे मैं जान को क़ुर्बान न करता
तू ने मुझे शायद कोई पैग़ाम दिया था

हस्ती-ओ-अदम दोनों हम-आग़ोश थे गोया
तस्वीर का इक रुख़ था फ़ना एक बक़ा था

मतलूब के दिल में भी तलब थी मिरी 'शौकत'
देखा उसे मैं ने तो मुझे देख रहा था