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'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में | शाही शायरी
aazar raha hai tesha mere KHandan mein

ग़ज़ल

'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में

दिलावर अली आज़र

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'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में
पैकर दिखाई देते हैं मुझ को चटान में

सब अपने अपने ताक़ में थर्रा के रह गए
कुछ तो कहा हवा ने चराग़ों के कान में

मैं अपनी जुस्तुजू में यहाँ तक पहुँच गया
अब आइना ही रह गया है दरमियान में

मंज़र भटक रहे थे दर-ओ-बाम के क़रीब
मैं सो रहा था ख़्वाब के पिछले मकान में

लज़्ज़त मिली है मुझ को अज़िय्यत में इस लिए
एहसास खींचना था बदन की कमान में

निकली नहीं है दिल से मिरे बद-दुआ' कभी
रक्खे ख़ुदा अदू को भी अपनी अमान में

'आज़र' उसी को लोग न कहते हों आफ़्ताब
इक दाग़ सा चमकता है जो आसमान में