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आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर | शाही शायरी
aawe jo naz se mera wo but-e-sim-bar ba-bar

ग़ज़ल

आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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आवे जो नाज़ से मिरा वो बुत-ए-सीम-बर ब-बर
काहे को ले फिरे मुझे मेरा नसीब दर-ब-दर

चश्म-ब-चश्म रू-ब-रू सीना-ब-सीना दिल-ब-दिल
साक़-ब-साक़-ओ-लब-ब-लब पाए-ब-पाए सर-ब-सर

तुम तो रहो हो मेहरबाँ ग़ैर के साथ इस तरह
और मैं फिरूँ हूँ ख़्वार-ओ-ज़ार ख़ाना-ब-ख़ाना घर-ब-घर

ऐ बुत-ए-मेहर-वश कभी टुक तो निगाह गर्म हो
अश्क से कब तलक रहें दामन-ओ-जेब तर-ब-तर

दाम-ए-बला से अब 'बक़ा' हम से असीर कब छुटें
रिश्ता-ए-ग़म से गुथ गए बाल-ब-बाल पर-ब-पर