आवारगान-ए-सहरा कू-ए-सनम न ढूँडें
जल्वों की वो बहारें ज़ुल्फ़ों के ख़म न ढूँडें
ऐ शहर-ए-संग तुझ में ज़ख़्मों की क्या कमी है
तेग़-ए-अदा-ए-जल्वा बेहतर है हम न ढूँडें
वो आबरू-ए-वहशत लाएँ तो अब कहाँ से
वो जन्नत-ए-तमन्ना वो दश्त-ए-ग़म न ढूँडें
हासिल न होगा कुछ भी जुज़ दाग़-ओ-दर्द-ए-इबरत
अहल-ए-वफ़ा हमारा नक़्श-ए-क़दम न ढूँडें
मक़्सद है सिर्फ़ इतना वा'दों की चाँदनी का
ख़्वाब-ए-सहर तो देखें ता'बीर हम न ढूँडें
हम बे-नियाज़ गुज़रे शोहरत की साज़िशों से
नाम-ओ-निशाँ हमारा अहल-ए-क़लम न ढूँडें
जाँ दी 'सरोश' हम ने राह-ए-ख़ुलूस-ए-ग़म में
फ़र्द-ए-अमल हमारी दैर-ओ-हरम न ढूँडें
ग़ज़ल
आवारगान-ए-सहरा कू-ए-सनम न ढूँडें
मतीन सरोश