EN اردو
आवारा आवारा ख़ुशबू हम दोनो | शाही शायरी
aawara aawara KHushbu hum dono

ग़ज़ल

आवारा आवारा ख़ुशबू हम दोनो

माहिर अब्दुल हई

;

आवारा आवारा ख़ुशबू हम दोनो
जाने किस दिन होंगे यकसू हम दोनों

ताज़ा ताज़ा फूलों की रुत कहती है
कर लें कुछ तफ़रीह लब-ए-जू हम दोनों

फिर क्या शय है माने' साथ निभाने में
रखते तो हैं यकसाँ ख़ुशबू हम दोनों

मैं चलता हूँ दिल पर अक़्ल-ओ-होश पे तो
जिस का तोड़ नहीं वो जादू हम दोनों

अपनी अपनी पहचानों के शैदाई
तारीकी में उड़ते जुगनू हम दोनों

टकराए तो टूटेंगे मिट जाएँगे
अपने आप पे रक्खें क़ाबू हम दोनों

रस्मों के बंधन से बाज़ू खुलते तो
आज़ादी से उड़ते हर-सू हम दोनों

उस में रह कर उस से बचना मुश्किल है
दुनिया नावक अफ़्गन आहू हम दोनों

तस्वीरों का एल्बम लाओ देखें तो
कितने थे ख़ुश-क़ामत ख़ुश-रू हम दोनों