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आतिश-ए-इश्क़ में जलता रहा बुझता रहा दिल | शाही शायरी
aatish-e-ishq mein jalta raha bujhta raha dil

ग़ज़ल

आतिश-ए-इश्क़ में जलता रहा बुझता रहा दिल

अली वजदान

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आतिश-ए-इश्क़ में जलता रहा बुझता रहा दिल
रंज-ए-बेताब से दरिया कभी सहरा रहा दिल

इक सफ़र हाँ वो सफ़र पाँव की ज़ंजीर बना
बा'द ऐ यार तिरी याद में जलता रहा दिल

महफ़िल-आराई की ख़्वाहिश थी सो दिल उस के सबब
महफ़िल-आरा रहा वीराँ रहा तन्हा रहा दिल

मौजा-ए-ख़ूँ किसी सीने में रुका था कल रात
दर्द उठता रहा चुभता रहा दुखता रहा दिल