आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
एक दिन रात ढले यौम-ए-हिसाब आएगा
मुतमइन ऐसे कि हर गाम यही सोचते हैं
इस सफ़र में कोई सहरा न सराब आएगा
ये जवानी तो बुढ़ापे की तरह गुज़रेगी
उम्र जब काट चुकूँगा तो शबाब आएगा
कब मिरी आँखों में ख़ूँ-रंग किरन उतरेगी
रात की शाख़ पे कब अक्स-ए-गुलाब आएगा
ज़र्द मिट्टी में घुली सब्ज़ तवानाई 'नजीब'
अब ज़रा आँख लगी है तो ये ख़्वाब आएगा

ग़ज़ल
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
नजीब अहमद