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आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा | शाही शायरी
aasmanon se zaminon pe jawab aaega

ग़ज़ल

आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा

नजीब अहमद

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आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
एक दिन रात ढले यौम-ए-हिसाब आएगा

मुतमइन ऐसे कि हर गाम यही सोचते हैं
इस सफ़र में कोई सहरा न सराब आएगा

ये जवानी तो बुढ़ापे की तरह गुज़रेगी
उम्र जब काट चुकूँगा तो शबाब आएगा

कब मिरी आँखों में ख़ूँ-रंग किरन उतरेगी
रात की शाख़ पे कब अक्स-ए-गुलाब आएगा

ज़र्द मिट्टी में घुली सब्ज़ तवानाई 'नजीब'
अब ज़रा आँख लगी है तो ये ख़्वाब आएगा