EN اردو
आसमानों सा खुला-पन भी मुझे चाहिए है | शाही शायरी
aasmanon sa khula-pan bhi mujhe chahiye hai

ग़ज़ल

आसमानों सा खुला-पन भी मुझे चाहिए है

इज़हार वारसी

;

आसमानों सा खुला-पन भी मुझे चाहिए है
पाँव थक जाएँ तो मस्कन भी मुझे चाहिए है

दोस्तो तुम से उमीदें तो बहुत कुछ थीं पर अब
एक माक़ूल सा दुश्मन भी मुझे चाहिए है

क़ब्ल-ए-मंज़िल कहीं लुट जाने की हसरत है बहुत
राहबर ही नहीं रहज़न भी मुझे चाहिए है

मसअले कम नहीं वैसे ही सुलझने के लिए
और तिरी ज़ुल्फ़ की उलझन भी मुझे चाहिए है

वक़्त के साथ बदलती नहीं तहरीर-ए-निहाद
तितलियाँ देखूँ तो बचपन भी मुझे चाहिए है

अब तो इस शर्त पे चाहूँ मैं तिरे हुस्न की आँच
आग लग जाए तो सावन भी मुझे चाहिए है