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आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए | शाही शायरी
aasman kuchh bhi nahin ab tere karne ke liye

ग़ज़ल

आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए

शहरयार

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आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
मैं ने सब तय्यारियाँ कर ली हैं मरने के लिए

इस बुलंदी ख़ौफ़ से आज़ाद हो उस ने कहा
चाँद से जब भी कहा नीचे उतरने के लिए

अब ज़मीं क्यूँ तेरे नक़्शे से नहीं हटती नज़र
रंग क्या कोई बचा है इस में भरने के लिए

ये जगह हैरत-सराए है कहाँ थी ये ख़बर
यूँही आ निकला था मैं तो सैर करने के लिए

कितना आसाँ लग रहा है मुझ को आगे का सफ़र
छोड़ आया पीछे परछाईं को डरने के लिए