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आशिक़ का जहाँ में घर न देखा | शाही शायरी
aashiq ka jahan mein ghar na dekha

ग़ज़ल

आशिक़ का जहाँ में घर न देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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आशिक़ का जहाँ में घर न देखा
ऐसा कोई दर-ब-दर न देखा

जैसा कि उड़े है ताइर-ए-दिल
ऐसा कोई तेज़-पर न देखा

ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
ऐसा कोई हम हुनर न देखा

टूटे दिल को बना दिखावे
ऐसा कोई कारी-गर न देखा

उस तेग़-ए-निगह से हो मुक़ाबिल
ऐसा कोई बे-जिगर न देखा

जारी हैं हमेशा चश्मा-ए-चशम
ऐसा कोई अब्र-ए-तर न देखा

जो आब है आबरू में 'हातिम'
ऐसा कोई हम गुहर न देखा