आशिक़ का जहाँ में घर न देखा
ऐसा कोई दर-ब-दर न देखा
जैसा कि उड़े है ताइर-ए-दिल
ऐसा कोई तेज़-पर न देखा
ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
ऐसा कोई हम हुनर न देखा
टूटे दिल को बना दिखावे
ऐसा कोई कारी-गर न देखा
उस तेग़-ए-निगह से हो मुक़ाबिल
ऐसा कोई बे-जिगर न देखा
जारी हैं हमेशा चश्मा-ए-चशम
ऐसा कोई अब्र-ए-तर न देखा
जो आब है आबरू में 'हातिम'
ऐसा कोई हम गुहर न देखा
ग़ज़ल
आशिक़ का जहाँ में घर न देखा
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम