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आशिक़-ए-गेसू-ए-दुता हूँ मैं | शाही शायरी
aashiq-e-gesu-e-duta hun main

ग़ज़ल

आशिक़-ए-गेसू-ए-दुता हूँ मैं

किशन कुमार वक़ार

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आशिक़-ए-गेसू-ए-दुता हूँ मैं
आप अपने लिए बला हूँ मैं

क्या शिकायत अगर न जाने यार
ख़ुद नहीं जानता कि क्या हूँ मैं

मिस्ल-ए-गुल हँस के मैं कभी न खिला
ग़ुंचा साँ ज़ीस्त से ख़फ़ा हूँ मैं

मैं तो ऐ जान हूँ बुरे से बुरा
मेरा ये मुँह कहूँ भला हूँ मैं

दिल है आईना-ए-दो-रू अपना
दोस्त दुश्मन से एक सा हूँ मैं

तेरा आशिक़ हूँ ऐ बुत-ए-रा'ना
ग़ैर हूँ मैं कि आश्ना हूँ मैं

मुझ को तस्लीम है जफ़ा-ए-यार
हर तरह ताबा'-ए-रज़ा हूँ मैं

मौज-ए-निकहत मिरा जनाज़ा है
कुश्ता-ए-ख़ंजर-ए-अदा हूँ मैं

फिर चुभा दिल में ख़ार ग़म है 'वक़ार'
फिर किसी गुल का मुब्तला हूँ मैं