आरास्तगी बड़ी जिला है
पत्थर की बग़ल में आइना है
मुझ को यही आप से गिला है
पूछा न कभी कि हाल क्या है
अल्लाह रे हुस्न की लगावट
दाऊद रक़ीब और या है
खोटे हैं तिलाई रंग वाले
उस सोने को बारहा कसा है
बालों के घटा तले हैं झाले
मेंह मोतियों का बरस रहा है
तक़दीर में आग लगी गई है
आलम से जिगर जला-भुना है
पीरी में है हर्फ़ ज़िंदगी पर
जो क़द ख़मीदा है वो ला है
पीते हैं शराब मा-बदौलत
साक़ी बत-ए-मय नहीं हुमा है
मैं दौड़ रहा हूँ उस के पीछे
जो साए से अपने भागता है
बीमार हूँ ख़ूब-सूरतों का
हुस्न-ए-यूसुफ़ मिरी दवा है
बारीक कमर है क्या ही उस की
तलवार में बाल आ गया है
भवों पर जो दुपट्टे का है लचका
पट्ठा तलवार पर चरा है
कमरे का खुला है दर सर-ए-राह
मा'शूक़ बग़ल में है ये क्या है
क्यूँ होते हो 'बहर' तश्त-अज़-बाम
चिलमन छुड़वा दो सामना है
ग़ज़ल
आरास्तगी बड़ी जिला है
इमदाद अली बहर